सुनाऊ मैं एक कहानी आज तुमको,
सुनना सब जरा गौर से,
ये कहानी पुराणी, सत्य की जीत पे,
रावण था बड़ा ज्ञानी, जिसकी थी सोने की लंका,
अभिमान से भरा उसका मन,
सबको बड़ा सताता था,
एक दिन जब राम-सीता को वनवास मिला,
उसने सीता के हरण का सोचा था,
देख मौका कर लिया हरण उसने माता सीता का,
कर सात समुन्द्र पार,
उस किनारे वो रहता था,
ढूंढा राम-लक्षण ने इधर-उधर,
तब उन्हें हनुमान का साथ मिला था,
हनुमान राम के परम् भक्त,
सीता को मानते थे माता,ढूंढने माता को वो पहुंच गए सोने की लंका,
देख माता को राम की अंगूठी दी,
करके पहचान लंका को जलाया था,
करके रावण का अंत,
माता सीता राम से मिली थी,
इससे सब एक सबक सीखो,
बुराई के पंथ पर तुम कभी ना चलो,
तभी होगी सच्ची जीत,
दशहरा के दिन रावण को जलाकर,
फिर से एक उम्मीद जगाई है,
सदा होगी सत्य की जीत,
ये नारा गूंजना है!!
आ रहा है दशहरा,
बुराई पर सत्य की जीत का संदेश देने,
इस दिन हुई बुराई की हार है,
राम ने कर रावण का विनाश,
एक नई उम्मीद जगाई है,
जिसने भी किया अभिमान,
मुँह के बल वो गिरा है,
जिसके मन में है राम नाम,
उसके जीवन में उजियारा छाया है,
सब रखो सदा यही सोच,
सबके प्रति न कोई छल-कपट हो,
एक-दूसरे से मिलकर ,
सब प्रेम के गीत गाओ,
हर घर का अंधकार मिटे,
घर-घर में दिवाली की रौनक हो,
जिसने की अच्छे,
उसे सदा मिली सबसे है बड़ाई!!
विजयादशमी पर कविता २०२१
दशहरा के पावन पर्व को,
विजयादशमी भी कहते है,
इस दिन हारा था झूठ,
जीत की हुई जीत थी,
सोने की लंका में ,
राम ने किया था उसका अंत,
विजयादशमी का ये पर्व,
एक सीख सिखलाता है,
सदा ही बुराई की हार,
सत्य की जीत ये उपहार दिलाता है,
तुम चलो हमेशा सत्य की राह पर,
भले उसमे बिछे हो काँटों के फूल,
बिना रुके तुम चलते रो,
एक दिन यही शूल बनेगे,
तुम्हारे कदमो के फूल!!
विजयादशमी विजय का पर्व,
सबको यही सिखलाता है,
तुम कभी ना बुराई के सामने झुको,
एक दिन पाप का भी घड़ा भर जाता है,
माना सत्य के पंथ पर लाख कठिनाईयां होगी,
पर एक दिन अवश्य ही तुम्हारी जीत होगी,
ये पर्व भी हमे यही दिखलाता है,
हमेशा होगी सत्य की जीत,
ये विश्वास दिलाता है!!
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