.Miraculous Temple राजस्थान के नागौर जिले के डेगाना तहसील में आछोजाई ग्राम में कोड्या डूंगरी पुरे देश में विख्यात है। पहाड़ी की तलहटी में पांडव पौत्र राजा परीक्षित पुत्र जन्मजेय महाराज जिनको स्थानीय भाषा में जानाजी महाराज के नाम से जाना जाता है ।
यहाँ हजारु भक्त रोज दर्शन के लिए आते है । प्राचीन मान्यताओं के अनुसार जन्मेजय अरावली पर्वतमाला आछोजाई पर पहुंचे। और वंहा स्थित कुंड में उन्होंने सनान किया। यह कुंड आज भी इस पहाड़ी पर स्थित है। ऐसी मान्यता है की यहाँ नहाने से कुष्ट रोग दूर हो जाता है। कुष्ठ रोग दूर होने के बाद राजा जन्मजेय समाज से दूर विरक्त हो गए वह राजपाठ छोड़ यही भक्ति में लीन हो गए।
चमत्कारी मंदिर जन्मेजय परिचय
युगों की अवधि–
सतयुग 4 432000 वर्ष
त्रेता युग 3 432000 वर्ष
द्वापर युग 2 432000 वर्ष
कलयुग 1 432000 वर्ष
द्वापर युग के अंत समय में महाभारत युद्ध हुआ था पांडव पुत्र अर्जुन, अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु, अभिमन्यू के पुत्र परीक्षित, परीक्षित के पुत्र जन्मेजय (जानाजी)।
चमत्कारी मंदिर परीक्षित द्वापर युग के अंतिम प्रतापी राजा थे इनके रहते कलयुग का आना सम्भव नहीं था। महाभारत के अनुसार परीक्षित अर्जुन के पौत्र, अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा जनमेजय के पिता थे। जब ये गर्भ में तव अश्वथामा ने व्रह्मास्त्र से परीक्षित को मारने की कोशिश की थी। ओर उस घटना के बाद योगेश्वर, श्रीकृष्ण ने अपने योगवल से उत्तरा के मृत पुत्र को जीवित किया। महाभारत के अनुसार कुरुवंश के परिक्षीण होने पर जन्म होने से वे ‘परिक्षित’ कहलाए।
Miraculous Temple, परीक्षित युधिष्ठिर आदि पांडव संसार से भली भाँति उदासीन हो चुके थे और तपस्या के अभिलाषी थे। अतः वे शीघ्र ही परीक्षित को हस्तिनापुर के सिंहासन पर बिठा द्रौपदी समेत तपस्या करने चले गए। परीक्षित जब राजसिंहासन पर बैठे तो महाभारत युद्ध की समाप्ति हुए कुछ ही समय हुआ था। भगवान कृष्ण उस समय परमधाम सिधार चुके थे। और युधिष्ठिर को राज्य किए ३६ वर्ष हुए थे। राज्यप्राप्ति के अनंतर गंगातट पर उन्होंने तीन अश्वमेघ यज्ञ किए जिनमें अंतिम बार देवताओं ने प्रत्यक्ष आकर बलि ग्रहण किया था। इनके विषय में सबसे मुख्य बात यह है के इन्हीं के राज्यकाल में द्वापर का अंत और कलियुग का आरंभ होना माना जाता है।
दुनिया का सबसे रहस्यमय मंदिर
इस संबंध में भागवत में यह कथा है—एक दिन राजा परीक्षित ने सुना कि कलियुग उनके राज्य में घुस आया है। और अधिकार जमाने का मौका ढूँढ़ रहा है। ये उसे अपने राज्य से निकाल बाहर करने के लिये ढूँढ़ने निकले। एक दिन इन्होंने देखा कि एक गाय और एक बैल अनाथ और कातर भाव से खड़े हैं। और एक शूद्र जिसका वेष, भूषण और ठाट-बाट राजा के समान था, डंडे से उनको मार रहा है। बैल के केवल एक पैर था। पूछने पर परीक्षित को बैल, गाय और राजवेषधारी शूद्र तीनों ने अपना अपना परिचय दिया।
Miraculous Temple, गाय पृथ्वी थी, बैल धर्म ता और शूद्र कलिराज। धर्मरूपी बैल की सत्य, तप और दयारूपी तीन पैर कलियुग ने मारकर तोड़ डाले थे। केवल एक पैर दान के सहारे वह भाग रहा था। उसको भी तोड़ डालने के लिये कलियुग बराबर उसका पीछा कर रहा था। यह वृत्तांत जानकर परीक्षित को कलियुग पर बड़ा क्रोध हुआ। और वे उसको मार डालने को उद्यत हुए। पीछे उसके गिड़गिड़ाने पर उन्हें उसपर दया आ गई। और उन्होंने उसके रहने के लिये ये स्थान बता दिए—जुआ, स्त्री, मद्य, हिंसा और सोना। इन पाँच स्थानों को छोड़कर अन्यत्र न रहने की कलि ने प्रतिज्ञा की।
राजस्थान के चमत्कारी मंदिर
राजा ने पाँच स्थानों के साथ साथ ये पाँच वस्तुएँ भी उसे दे डालीं—मिथ्या, मद, काम, हिंसा और बैर। इस घटना के कुछ समय बाद महाराज परीक्षित एक दिन आखेट करने निकले। कलियुग बराबर इस ताक में था। कि किसी प्रकार परीक्षित का खटका मिटाकर अकंटक राज करें। राजा के मुकुट में सोना था ही, कलियुग उसमें घुस गया। राजा ने एक हिरन के पीछे घोड़े डाला। बहुत दूर तक पीछा करने पर भी वह न मिला। थकावट के कारण उन्हें प्यास लग गई थी। एक वृद्ध मुनि (शमीक) मार्ग में मिले। राजा ने उनसे पूछा कि बताओ, हिरन किधर गया है। मुनि मौनी थे, इसलिये राजा की जिज्ञासा का कुछ उत्तर न दे सके।
थके और प्यासे परीक्षित को मुनि के इस व्यवहार से बड़ा क्रोध हुआ। कलियुग सिर पर सवार था ही, परिक्षित ने निश्चय कर लिया कि मुनि ने घमंड के मारे हमारी बात का जवाब नही दिया है। और इस अपराध का उन्हें कुछ दंड होना चाहिए। पास ही एक मरा हुआ साँप पड़ा था। राजा ने कमान की नोक से उसे उठाकर मुनि के गले में डाल दिया और अपनी राह ली। (महा., आदि. ३६, १७-२१) मुनि के श्रृंगी नाम का एक महातेजत्वी पुत्र था। वह किसी काम से बाहर गया था। लौटते समय रास्ते में उसने सुना कि कोई आदमी उसके पिता के गले में मृत सर्प की माला पहना गया है।
Miraculous Temple, कोपशील श्रृंगी
Miraculous Temple, कोपशील श्रृंगी ने पिता के इस अपमान की बात सुनते ही हाथ में जल लेकर शाप दिया। कि जिस पापत्मा ने मेरे पिता के गले में मृत सर्प की माला पहनाया है। आज से सात दिन के भीतर तक्षक नाम का सर्प उसे डस ले। आश्रम में पहुँचकर श्रृंगी ने पिता से अपमान करनेवाले को उपर्युक्त उग्र शाप देने की बात कही। ऋषि को पुत्र के अविवेक पर दुःख हुआ। और उन्होंने एक शिष्य द्वारा परीक्षित को शाप का समाचार कहला भेजा जिसमें वे सतर्क रहें। परीक्षित ने ऋषि के शाप को अटल समझकर अपने पुत्र जनमेजय को राज पर बिठा दिया। और एक खंभे पर ऊंची महल पर सब ओर से सुरक्षित होकर रहने लगे ।
सातवें दिन तक्षक ने आकर उन्हें डस लिया और विष की भयंकर ज्वाला से उनका शरीर भस्म हो गया। कहते हैं। तक्षक जब परीक्षित को डसने चला तब मार्ग में उसे कश्यप ऋषि मिले। पूछने पर मालूम हुआ कि वे उसके विष से परीक्षित की रक्षा करने जा रहे हैं।
चमत्कारी शिव मंदिर
तक्षक ने एक वृक्ष पर दाँत मारा, वह तत्काल जलकर भस्म हो गया। कश्यप ने अपनी विद्या से फिर उसे हरा कर दिया। इसपर तक्षक ने बहुत सा धन देकर उन्हें लौटा दिया। देवी भागवत में लिखा हैं, शाप का समाचार पाकर परीक्षित ने तक्षक से अपना रक्षा करने के लिये एक सात मंजिल ऊँचा मकान बनवाया। और उसके चारों ओर अच्छे अच्छे सर्प-मंत्र-ज्ञाता और मुहरा रखनेवालों को तैनात कर दिया। तक्षक को जब यह मालूम हुआ तब वह घबराया। अंत को परीक्षित तक पहुँचने को उसे एक उपाय सूझ पड़ा। उसने एक अपने सजातीय सर्प को तपस्वी का रूप देकर उसके हाथ में कुछ फल दे दिए। और एक फल में एक अति छोटे कीड़े का रूप धरकर आप जा बैठा।
तपस्वी बना हुआ सर्प तक्षक के आदेश के अनुसार परीक्षित के उपर्युक्त सुरक्षित प्रासाद तक पहुँचा। पहरेदारों ने इसे अंदर जाने से रोका, पर राजा को खबर होने पर उन्होंने उसे अपने पास बुलवा लिया और फल लेकर उसे बिदा कर दिया। एक तपस्वी मेरे लिये यह फल दे गया है। अतः इसके खाने से अवश्य उपकार होगा, यह सोचकर उन्होंने और फल तो मंत्रियों में बाँट दिए। पर उसको अपने खाने के लिये काटा। उसमें से एक छोटा कीड़ा निकला जिसका रंग तामड़ा और आँखें काली थीं। परीक्षित ने मंत्रियों से कहा—सूर्य अस्त हो रहा है। अब तक्षक से मुझे कोई भय नहीं। परन्तु ब्राह्मण के शाप की मानरक्षा करना चाहिए। इसलिये इस कीड़ी से डसने की विधि पूरी करा लेता हूँ।
Famous Miraculous Temples
चमत्कारी मंदिर यह कहकर उन्होंने उस कीड़े को गले से लगा लिया। परीक्षित के गले से स्पर्श होते ही वह नन्हा सा कीड़ा भयंकर सर्प हो गया। और उसके दंशन के साथ परीक्षित का शरीर भस्मसात् हो गया। इस समय परीक्षित की अवस्था ९६ वर्ष की थी।परीक्षित की मृत्यु के बाद। फिर कलियुग की रोक टोक करनेवाला कोई न रहा। और वह उसी दिन से अकंटक भाव से शासन करने लगा। पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये जनमेजय ने सर्पसत्र किया जिसमें सारे संसार के सर्प मंत्रबल से खिंच आए और यज्ञ की अग्नि में उनकी आहुति हुई।
Miraculous Temple, चमत्कारी मंदिर इसी सर्पमेघ यज्ञ के बाद में जनमेजय को कोढ़ रोग,कालिया रोग हो गया। इसकी मुक्ति के लिए वे राजस्थान के नागौर जिले के डेगाना पंचायत समिति के आच्छोजाई ग्राम पधारें। यहाँ उनके स्थल रेंवत की डूंगरी -रेंवत घोड़ी के नाम पर कालियो डूंगर कोढयो डूंगर -यहां के जलकुंड में कोढ़ रोग से मुक्ति मिली। तामडोली -चरणपादुका त्याग स्थान। तपस्या पुर्व से पश्चिम दिशा में स्थित जानाजी पर्वत प्रसिद्ध वचन सिद्धि सेवक चेतन गिरी महाराज। यहाँ के सभी महंतो के नाम के पीछे “गिरी” शब्द की उपाधि लगती है। जो जानाजी के तपस्या वाले पर्वत का सूचक है*वर्तमान संत -संत श्री जयराम गिरी जी महाराज।