A Monster:- प्राचीन काल में जालंधर नाम के राक्षस ने चारों तरफ उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर पराक्रमी था। उसकी वीरता उसकी पत्नी वृंदा की पतिव्रता धर्म के प्रभाव से सभी जगह विजय होता था। जालंधर के उपदेशों से डरकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए तथा रक्षा करने की प्रार्थना की थी। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने बहुत सोच-विचार कर वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग करने का निश्चय किया।
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उन्होंने योग माया द्वारा एक मृत शरीर वृंदा के घर के आंगन में फेंक दिया। माया का पर्दा होने से वृद्धा को वह अपने पति का दिखाई दिया। अपने पति को मृत देख उस मृत शरीर पर गिरकर विलाप करने लगी।
उसी समय एक साधू उसके पास आए और कहने लगे। बेटी इतना मत करो। मैं इस शरीर में जान डाल दूंगा। साधु ने मृत शरीर में जान डाल दी। फिर वृंदा ने उस शरीर का आलिंगन कर लिया।
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जिसके कारण उसका पतिव्रत धर्म नष्ट हो गया। बाद में वृंदा को भगवान का यह छल कपट ज्ञात हुआ। उधर उसका पति जालंधर जो देवताओं से युद्ध कर रहा था। वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जब वृंदा को इस बात का पता चला तो उसने क्रोध में आकर भगवान विष्णु को श्राप दे दिया। जिस प्रकार तुमने मुझे पति वियोग किया है
उसी प्रकार तुम भी अपनी पत्नी का छल पूर्णक हरण होने पर स्त्रि वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे।यह कहकर वृंदा अपने पति के शव के साथ सती हो गई। भगवान विष्णु अब अपने छल पर बड़े लज्जित हुए देवताओं ने उन्हें कई प्रकार से समझाया तथा पार्वती जी ने वृंदा की चिता बस भस्म में आंवला, तुलसी के पौधे लगाए।
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भगवान विष्णु ने तुलसी के पौधे लगाए। भगवान विष्णु ने तुसली को ही वृंदा रूप में समझा, मगर कालांतर में राम अवतार के समय राम जी का विवाह सीता माता से हुआ पर वृंदा के दिए गए श्राप के कारण रामजी को सीता माता का वियोग सहना पड़ा । पहले तो रामजी ओर सीता माता को 14 साल का वनवास मिला
फिर जब वापिस महल आए तब उन्हे बार बार अग्नि परीक्षा देनी पड़ी। माता सीता पवित्र होने के कारण और बार बार अग्नि परीक्षा देने की बजाय उन्होंने धरती माता में समाना चाहा।इस प्रकार भगवान को भी पत्नी वियोग सहना पड़ा। विष्णु भगवान ने कहा, हे वृंदा, मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय तुम हो गई हो यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल हैं। कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ रहोगी।
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भगवान विष्णु ने कहा कि जो भी मनुष्य तुलसी के साथ मेरा विवाह करेगा वह परमधाम को प्राप्त होगा। इस पुण्य की प्राप्ति के लिए आज के कलियुग में भी तुलसी विवाह बड़ी ही धूम धाम से करते हैं।
तुलसी माता का कन्यादान करके तुलसी विवाह संपन्न करते हैं। Facebook अगर किसी के पुत्री ना हो तो वह तुलसी माता को अपनी बेटी मानकर उनका विवाह करते हैं। तुलसी माता का कन्यादान सबसे बड़ा दान माना जाता हैं। तुलसी पूजा करने का बहुत बड़ा महत्व होता है।