प्रकृति की है लीला न्यारी
प्रकृति की है लीला न्यारी,
कभी निकलती धुप, कभी बरसता पानी,
चलती ठंडी हवाएं, कभी लगती लू अपार,
कभी आसमा नीला-नीला,
हो जाता ये लाल-पीला,
सूरज करता जग को रोशन,
चाँद करता अंधियारे में उजाला,
उड़ती कभी रेगिस्तान में धुल,
खिलते बागों में फूल,
होता कभी खूब अँधेरा,
बादल जब छा जाते आसमा में,
हटकर वो करते उजाला, जैसे हो चाँद में,
प्रकृति की लीला है न्यारी ,
कोई ना इसको समझ पाए,
जो इसमें समाए, जीवन अपना सवारे!!
फूलों से तुम मुस्कुराना सिखो
पेड़-पौधे हमे देते शीतल छाया,
इनसे ही मिलते फल है हमे,
दूषित ना तुम इसको करों,
इसका बिना मरना भी है तुम्हे,
प्रकृति हमे देती पेड़ों से साँस,
वृक्ष से फल,अपनी सुंदरता के नजारे,
व्यर्थ ना तुम इसको गवाओ,
झरने के जैसे चलना सीखो,
बिन मतलब अपनों से प्यार करना सीखो,
बारिश जैसे तुम अपने गमों को भुला डालो,
फूलों से तुम मुस्कुराना सिखो,
बिन मतलब ना तुम यूँ गरजो,
गरजे हो तो फिर बरसना भी सीखो,
समय की कदर तुम करना सीखो,
वक्त रहते तुम मंजिल की और चलना सीखो!!
सबके जीवन को तुम उजाला दो
प्रकृति हमें बहुत कुछ सिखलाती है,
सही मार्ग ये दिखलाती है,
नदी हमसे कहती है बहते रहो बहते रहो ,
बेबस न तुम यूँ पड़े रहो,
पेड़-पौधे कहते है, तुम फलो,
सत्य के पथ पर तुम हमेशा चलो,
सभी को दो मन की छाया,
दान-पुण्य हमेशा है काम आया,
चाँद-तारे कहते है, तुम चमको तुम चमको,
व्यर्थ ना तुम अपनी चमक गवाओ,
सूरज कहता है, रौशनी दो, रौशनी दो,
सबके जीवन को तुम उजाला दो,
हुआ है साँझ, तो होगा सवेरा भी,
यूँ छोटी-छोटी हार से ना तुम घबराओं,
सीखो उस पानी से तुम कुछ ,
जिसका कोई रंग नहीं,
फिर भी उसके बिना जीना सम्भव नहीं!!
प्रकृति का ये सुंदर नजारा
वो देखो रंग-बिरंगा सा आसमा,
उसमे भरते उड़ान पंछी हजार,
पर्वत भी अपना शीश उठाकर,
छूने लगा आसमा,
हरे-भरे पत्तों को खाते ये हिरन चोर,
खरगोश भी क्या खूब छाया है,
जैसे प्रकृति में नया नजारा आया है,
देख इसे मोर भी शरमाया है,
कोयल की कू-कू में मगन सभी,
तारीफों के फूल बरसाए है,
बसंत भी झूम उठा देख ये नजारा,
क्या खूब कोयल ने गाया है,
प्रकृति का ये सुंदर नजारा,
सबके मन को भाया है!!
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