Triumph Of Truth- एक बुढ़िया थी। वह प्रत्येक रविवार को सवेरे गोबर से घर लीपकर , स्नान करके भगवान की पूजा करती। फिर भोजन तैयार कर भगवान को भोग लगाकर खुद भोजन करती थी। श्री हरि की कृपा से उसका घर सभी प्रकार के सुख एवं धनधान्य से पूर्ण था। किसी प्रकार का दुख नहीं था।
सब प्रकार से घर में आनंद रहता था। उसकी एक पड़ोसन जिसकी गौ का गोबर वह बुढ़िया रोज ले जाया करती थी। इसलिए उसकी पड़ोसन उस बुढ़िया की संपदा से जलने लगी।
वह विचार करने लगी कि वह वृद्धा सर्वदा मेरी गौ का गोबर ले जाती है। इसलिए अगले दिन से वह अपनी गाय को घर के भीतर बांधने लगी। वे रविवार का दिन था। बुढ़िया गाय का गोबर ने मिलने के कारण अपना घर नहीं लिप सके। उस दिन उसने ने तो भोजन बनाया ने भगवान को भोग लगाया ओर ने ही खुद ने भोजन किया।
इस प्रकार उसने निराहार व्रत किया। रात्रि हो गई। वह भूखी सो गई। रात्रि में भगवान आए उसे स्वप्न में दर्शन दिए और भोग नही लगाने ओर भोजन नही करने का कारण पूछा। वृद्धा नेकहा उसे गोबर नहीं मिला इस कारण मैं अपका भोग नही लगा सकी।
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तब भगवान ने कहा हे माता हम तुमको ऐसी जी देते हैं जो सभी इच्छाएं पूर्ण करती है क्योंकि तू हमेशा रविवार को पूरा घर गौ के गोबर से लिप कर भोजन बनाकर मेरा भोग लगाकर ही खुद भोजन करती हो।
इससे मैं बहुत प्रसन्न हूं। मै निर्धन को धन और बांझ को पुत्र देकर उनके दुखों को दूर करता हूं। तथा अंत समय में मोक्ष देता हूं स्वप्न में ऐसा वरदान देकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए।
सवेरे जब वृद्धा की आंखे खुली तो उसने देखा की आंगन में एक बहुत ही सुंदर गाय बंधी हुई हैं। गाय को देखकर वह वृद्ध महिला अत्यंत प्रसन्न हो गई और उनको घर के बाहर बांध दिया। वहीं उनके खाने के लिए चारा भी डाल दिया।
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जब उसकी पड़ोसन के घर के बाहर बहुत सुंदर गाय को बांधा हुआ देखा तो क्रोध के कारण से बहुत बुरा लगा। जब उसने देखा की गाय ने सोने का गोबर दिया है तो वह चोरी से उस गाय का गोबर उठाकर ले गई और अपनी गाय का गोबर उसकी जगह रख देती। वह प्रतिदिन ऐसा करने लगी।
इसलिए भगवान ने सोचा कि चालाक पड़ोसन के कर्म से बुढ़िया ठगी जा रही हैं। एक दिन भगवान ने संध्या के समय अपनी माया से बड़ी जोर की आंधी चला दी। बुढ़िया ने आंधी के भय से अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। सुबह उठकर वृद्धा ने देखा की गाय ने सोने का गोबर दिया है तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।
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अब वह रोज अपनी गाय को भीतर बांधने लगी। पड़ोसन ने देखा की बुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी है और अब उसका सोने का गोबर उठाने का दाव नही चलेगा तो वह अपने क्रोध से जल उठी।
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अन्य कोई उपाय ने काम आते देख उस पड़ोसन ने उस देश के राजा को जाकर कहा_महाराज मेरे पड़ोस मे एक बुढ़िया रहती है जिसके पास सोने का गोबर देने वाली गाय है। आप वो सोना प्राप्त कर प्रजा का पालन कीजिए। वह वृद्धा इतने सोने का क्या करेगी। उसकी बात सुनकर राजा ने अपने कुछ सिपाहियों को वृद्धा के घर से गाय लाने का आदेश दिया।
वृद्धा सुबह भगवान का भोग लगाकर भोजन ग्रहण करने ही जा रही थी कि राजा के सिपाहि गाय को ले गए। वृद्धा बहुत रोई चिल्लाई किंतु सिपाहियों के सामने कोई क्या कहता?
उस दिन वृद्धा गाय के ले जाने के कारण भोजन नही कर सकी और रात भर रो रोकर भगवान से गाय को वापिस पाने के लिए प्रार्थना करने लगी। राजा गाय को देखकर बहुत खुश हुए। लेकिन अगले ही दिन सुबह जैसे ही वह उठा सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा।
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राजा यह देखकर घबरा गया। भगवान ने रात्रि में राजा को सपने मे कहा था, हे राजा!! वृद्धा को गाय वापिस लोटाने में ही तेरी भलाई है। उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर ही मैने उसे यह गाय उसे दी है।।
सुबह होते ही राजा ने वृद्धा को महल में बुलाकर बहुत धन के साथ सम्मान सहित गाय उसे लौटा दी और अपने किए पर क्षमा प्रार्थना की। इसके बाद राजा ने उसकी पड़ोसन को बुलाकर उचित दंड दिया। इतना करने के बाद राजा का महल फिर से पहले जैसा सुंदर हो गया।
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उसी दिन से राजा के नगर निवासियों को आदेश दिया की राज्य की समृद्धि तथा अपनी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु रविवार का व्रत करे। उस दिन के बाद से वहा के नगर के लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। सारी प्रजा सुख से रहने लगी।।