The Victory Of Faith:- एक बहुत बड़ा शहर था। इस शहर में लाखों लोग रहते थे। पहले के जमाने के लोग हमेशा एक दूसरे के साथ रहते थे। और पहले के जमाने के लोग हमेशा एक दूसरे की मदद करते थे। पर इस नए जमाने में तो लोग बिलकुल अलग से ही हो गए हैं। ना किसी की परवाह करते हैं, ना ही किसी की मदद करते हैं।
भजन कीर्तन, दया भावना, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गए हैं। आजकल दुनिया में बुराइयां बढ़ गई हैं। कहते है कि हजारों निराशा में एक अमर आशा छिपी हुई होती हैं। इसी तरह इतनी सारी बुराइयों के बावजूद दुनिया में कुछ अच्छे लोग भी रहते हैं।marwadichoudhary.in
ऐसे ही अच्छे लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थीं। शीला और उनका पति विवेक दोनों ही बड़े धार्मिक प्रकृति संतोषी और सुशील स्वभाव के थे। हालाँकि शीला की गृहस्थी इसी तरह खुशी खुशी चल रही थी। पर कहते हैं ना कि कर्म की गति अकल हैं।
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विधाता के लिखे लेख कोई नहीं समझ सकते। शीला के पति के अगले जन्म के कर्म भोगने बाकी रह गए होंगे कि वह बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा। वह जल्द से जल्द करोड़पति बनाना चाहता था। इसलिए वह गलत रास्ते की ओर जानें लगा और करोड़पति के बजाय रोडपति बन गया।
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शहर में शराब जुआ चरस गांजा इन सब में वो भी फंस गया। अपने बुरे दोस्तों के साथ उसे भी शराब जुआ सब खेलने लगा। इस तरह बचाई हुई धनराशि, पत्नि के गहनें, सब कुछ जुए में हार गया। एक वक्त ऐसा भी था जब वह अपनी पत्नी के साथ सुख से रहता था और प्रभु भजन में सुख शांति से वक्त व्यतीत करता था।
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यहाँ तक कि अब उसके घर में दरिद्रता भूखमरी फैल गई। वो अपनी पत्नि को गालियां देने लगा था। शीला सुशील और संस्कारी स्त्री थी। उसे अपने पति के ऐसे बर्ताव से बहुत दुःख होता। किंतु वह भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रखकर दुःख सहने लगी। कहा जाता है कि सुख के पीछे दुःख और दुःख के पीछे सुख आख़िर आता ही है।
इसलिए दुःख के पीछे सुख आएगा ही, ऐसी श्रद्धा के साथ शीला प्रभु भक्ति में लीन हो गई। अब शीला दुःख सहते सहते प्रभु भक्ति में वक्त बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी। शीला सोच में पड़ गई कि मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौन आया होगा।
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फिर शीला ने द्वार खोला और देखा तो एक बूढ़ी मां खड़ी थीं। वह काफी उमर के लग रहे थे परंतु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था। उनकी आंखो में से मानो जैसे अमृत बह रहा था। उनके चेहरे से करुणा और प्यार छलक रहा था। उनको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई।
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वैसे तो शीला बूढ़ी मां को जानती नहीं फिर भी उनको देखकर शीला के रोम रोम में आनंद छा गया। शीला उन्हे आदर के साथ घर में अन्दर ले आई। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था इसलिए शीला एक फटी चादर पर उनको बैठा दिया। बूढ़ी मां ने कहा क्या हुआ शीला!! मुझे पहचाना नहीं? शीला ने कहा: मां! आपको देखते ही बहुत खुशी हो रही है बहुत शांति छा गई है।
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ऐसा लगता हैं कि मैं बहुत दिनों से जिन्हें ढूंढ रही थी वो आप ही है। पर मै आपको पहचान नहीं पा रही। बूढ़ी मां ने हंस कर कहा: क्यों भूल गई? हर शुक्रवार को तुम लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन कीर्तन होते हैं। तब मैं भी वहा आती हूं और हर शुक्रवार को हम मिलते है।
पति गलत रास्ते पर चढ़ गया, तब से शीला बहुत दुःखी हो गई थी दुःख के कारण वह लक्ष्मीजी के मंदिर में भी नहीं जाती थी। क्योंकि बाहर के लोगों के साथ नज़र मिलाने पर भी उसे शर्म आती थी। उसने बहुत याद किया पर यह बूढ़ी मां याद नहीं आ रहे थे। तभी बूढ़ी मां ने कहा, पहले तू लक्ष्मीजी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थीं।
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आजकल तू वहा दिखाई नहीं देती है इसलिए मुझे लगा कही तू बीमार तो नही हो गई है। इसलिए ऐसा सोचकर मै तूझसे मिलने चली आई हूं। बूढ़ी मां के प्रेम भरे शब्दों से शीला का ह्रदय पिघल गया, उसकी आखों में आसूं आने लगे। बूढ़ी मां ने कहा: बेटी सुख और दुःख तो धूप और छांव जैसे है।
अगर आज दुःख है तो क्या हुआ कल सुख भी आएगा। धैर्य रखो बेटी!! और तुझे क्या परेशानी है मुझे बता जिससे तेरा मन भी हल्का हो जाएगा। बूढ़ी मां की बात सुनकर शीला के मन को शांति मिली। इसलिए उसने बूढ़ी मां को सब बता दिया। यह सब सुनकर बूढ़ी मां ने कहा: बेटी कर्म की गति न्यारी होती है, हर इन्सान को अपने कर्म भुगतने पड़ते हैं। इसलिए तू चिंता मत कर।
क्योंकि अब तू कर्म भुगत चुकी है , इसलिए अब तुम्हारे सुख के दिन आने वाले हैं तू तो मां लक्ष्मीजी की भगत है मां तो प्रेम और करुणा के अवतार हैं वह अपने भत्तों पर हमेशा प्रेम बरसाती है। इसलिए तू उनपर सब छोड़ दे। उनकी पूजा पाठ कर इससे सब पहले की तरह ठीक हो जाएगा।
यह सुनते ही शीला के चेहरे पर चमक सी आ गई। फिर शीला हर शुक्रवार को मां लक्ष्मी जी की पूजा आरती करती और उनका व्रत रखती। कुछ ही समय में शीला की गृहस्थी फिर से पहले जैसी हो गई उसका पति भी अब वापिस से पहले की तरह अच्छा इंसान बन गया था। Facebook
इसलिए इन्सान को हमेशा ये बात याद रखनी चाहिए कि कब हमारे कर्मो की सजा मिल जाए हमे पता ही नहीं चलता । इन्सान का नसीब पल भर में राजा को रंक बना देता है और रंक को राजा।।
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