Thoughts About Birds Nature:- पक्षियों के लिए खुला आकाश सोने के पिंजरे से कहीं अधिक प्यारा है। हम इन कविताओं के जरिये पक्षियों के माध्यम से मनुष्य को आज़ादी का मूल्य बताना चाहते है। जिस प्रकार मनुष्य के लिए आज़ादी से अधिक प्यारा कुछ भी नही है, उसी प्रकार यह पक्षी भी अपने पंख फैलाकर, आज़ादी के सपने लिए, विशाल गगन में उड़ जाने को हमेशा तत्पर रहते है।
ये क्षितिज के अंत तक आकाश में उड़ना चाहते है। ये मूक पक्षी सबसे प्रार्थना करते है कि चाहे उनके आश्रय स्थल समाप्त कर दिए जाये परन्तु उनकी आज़ादी की उड़ान में बाधा नही डाली जाये। यह कविता के माध्यम से हम सन्देश देना चाहते है कि आज़ादी में जो सुख है।
“पेड़ो की शाखाओ में तू,
सोने की चिड़िया कहे जानेवाले देश में,
सफेद बगुलों ने आश्वासनों के इन्द्रधनुषी,
सपने दिखाकर निरीह मेमनों की आंखें,
फोड़ डाली हैं,
मेमने दाना-पानी की जुगाड़ में व्यस्त हैं,
सफेद बगुले आलीशान पंचतारा होटलों,
में आजादी का जश्न मना रहे हैं,
प्रवासी पक्षियों के समूह सोने की चिड़िया,
कहे जाने वाले देश के वृक्षों पर अपने घोंसले,
बना रहे हैं और देशी चिड़ियों के समूह,
खाली वृक्ष की तलाश में भटक रहे हैं”
“कुछेक साल देशी चिड़िया को लगातार सौंदर्य,
का ताज पहनाया गया और प्रवासी पक्षी,
अपना स्थान बनाने की खुशी में गीत गुनगुना रहे हैं,
वृक्ष पर बैठे प्रवासी पक्षियों की बीट से,
पुण्य भूमि पर पाश्चात्य गंदगी फैल रही है,
विश्व गुरु कहे जानेवाले देश में गुरु पीटे जा रहे हैं,
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और चेले प्रेमिकाओं संग व्यस्त हैं,
शिक्षा व्यवस्था का बोझ गदहों की पीठ पर,
लाद दिया गया है,
अपने निहित स्वार्थ के लिए सफेद,
बगुले लगातार देश को बांटने की साजिश में लगे हैं”
“देश जितना बंटेगा कुर्सियां उतनी ही सुरक्षित होंगी,
महाभारत आज भी जारी है,
भूखे-नंगे लोग युद्ध क्या करेंगे, मारे जा रहे हैं,
बिसात आज भी बिछी है,
द्युत खेला जा रहा है ‘कौन बनेगा करोड़पति,
जैसे टीवी सीरियल देखकर बच्चे ही नहीं,
तथाकथित बुद्धिजीवी भी फोन डायल कर रहे हैं,
हवा में तैर रहा है बिना परिश्रम के,
करोड़पति बनने का सवाल,
प्रवासी पक्षी अगली सदी तक कितने अण्डे देंगे”
“काश,
हम पक्षी हुए होते,
इन्हीं आदिम जंगलों में घूमते हम,
नदी का इतिहास पढ़ते,
दूर तक फैली हुई इन घाटियों में,
पर्वतों के छोर छूते,
रास रचते इन वनैली वीथियों में,
फुनगियों से,
बहुत ऊपर चढ़,
हवा में नाचते हम,
इधर जो पगडंडियाँ हैं,
वे यहीं हैं खत्म हो जातीं,
बहुत नीचे खाई में फिरती हवाएँ,
हमें गुहरातीं”
“काश,
उड़कर,
उन सभी गहराइयों को नापते हम,
अभी गुज़रा है इधर से,
एक नीला बाज़ जो पर तोलता,
दूर दिखती हिमशिला का,
राज़ वह है खोलता”
“काश,
हम होते वहीं,
तो हिमगुफा के सुरों की आलापते हम,
एक मुक्त पक्षी उछलता,
हवा में और उड़ता चला जाता,
जहाँ-जहाँ तक बहाव,
समोता अपने पंख नारंगी सूर्य किरणों में,
जमाता आकाश पर अपना अधिकार,
लेकिन वह पक्षी जो करता विचरण अपने सँकरे पिंजरे में,
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कदाचित ही वह हो पाता अपने क्रोध से बाहर,
काट दिए गए हैं उसके पंख, बान्ध दिए गए हैं पैर,
इसलिए खोलता अपना गला वह गान के लिए,
गाता है पिंजरे का पक्षी भयाकुल स्वर में”
“गीत अज्ञात पर जिसकी चाह आज भी,
उसकी यह धुन सुनाई देती सुदूर पहाड़ी तक,
कि पिंजरे का पक्षी गाता है मुक्ति का गीत,
मुक्त पक्षी का इरादा एक और उड़ान का,
और मौसमी बयार बहती मन्द-मन्द,
होती सरसराहट वृक्षों की,
मोटी कृमियाँ करती प्रतीक्षा सुबह चमकीले लॉन में,
और आकाश को करता वह अपने नाम,
लेकिन पिंजरे का पक्षी खड़ा है अपने सपनों की क़ब्र पर,
दु:स्वप्न की कराह पर चीख़ती है उसकी परछाई,
काट दिए गए हैं उसके पंख, बाँध दिए गए हैं पैर”
“इसलिए खोलता अपना गला वह गान के लिए,
गाता है पिंजरे का पक्षी,
भयाकुल स्वर में गीत अज्ञात,
पर जिसकी चाह आज भी,
उसकी यह धुन सुनाई देती सुदूर पहाड़ी तक,
कि पिंजरे का पक्षी गाता है मुक्ति का गीत,
मैं भी अगर एक छोटा पंछी होता,
तो बस्ती-बस्ती में फिरता रहता,
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सुन्दर नग-नद-नालों का यार होता,
मस्ती में अपनी झूमता रहता, मैं भी अगर ….,
आदमी का गुण मुझ में न होता,
ईर्ष्या की आग में न जलाता होता”
“स्वार्थ के युद्ध में न मरता-मारता,
बम्ब-मिसाइल की वर्षा न करता, मैं भी अगर….,
आंखों में दौलत का काजल न पुतता,
शान के लिए पराया माल न हड़पता,
हर मानव मेरा हित-बंधु होता,
रंग-रूप पर अपना गर्व करता, मैं भी अगर….,
तब सारा जग मेरा अपना होता,
पासपोर्ट-वीज़ा कोई न खोजता,
स्वच्छन्द वन-वन में घूमता होता,
विश्व –भर मेरा अपना राज्य होता, मैं भी अगर ….,
प्यार के गीत जन-जन को सुनाता,
आवाज़ से अपनी सब को लुभाता”
“मानवता की वेदी पर सिर झुकाता,
सागर की उर्मिल का झूला झूलता,
मैं भी अगर एक छोटा पंछी होता,
चिड़िया निकली है आज लेने को दाना,
समय रहते फिर है उसे घर आना,
आसान न होता ये सब कर पाना,
Thoughts About Birds Nature In Hindi
कड़ी धूप में करना संघर्ष पाने को दाना,
फिर भी निकली है दाने की तलाश में,
क्योकि बच्चे है उसके खाने की आस में,
आज दाना नही है आस पास में,
पाने को दाना उड़ी है दूर आकाश में”
“आखिर मेहनत लायी उसकी रंग मिल गया,
उसे अपने दाने का कण पकड़ा,
उसको अपनी चोंच के संग,
ओर फिर उड़ी आकाश में जलाने को,
अपने पंख भोर हुई पहुँची अपने ठिकाने को,
बच्चे देख रहे थे राह उसकी आने को,
माँ को देख बच्चे छुपा ना पाए अपने मुस्कुराने को,
माँ ने दिया दाना सबको खाने को,
दिन भर की मेहनत आग लगा देती है,
पर बच्चो की मुस्कान सब भुला देती है”
“वो नन्ही सी जान उसे जीने की वजह देती है,
बच्चो के लिए माँ अपना सब कुछ लगा देती है,
फिर होता है रात का आना सब सोते है,
खाकर खाना चिड़िया सोचती है,
क्या कल आसान होगा पाना दाना,
पर अपने बच्चो के लिए उसे कर है दिखाना,
अगली सुबह चिड़िया फिर उड़ती है लेने को दाना,
गाते हुए एक विस्वास भरा गाना”
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